इस बात को कई बार कहा जा चूका है की बापू का जीवन और चिंतन पुरे विश्व के लिए कभी अप्रासंगित नहीं होंगे | जीवन का ऐसा कोई विषय नहीं था जिस पर उन्होंने कुछ सोचा नहीं और कुछ लिखा नहीं वे पल पल के बारे में सजग थे जागृक्त थे संवेदन शील थे उन के व्यव्हार और विचार में आने वाले विष की सभी समस्याओ का उतर और भी दीखता है इस लिए उस की प्रासंगिकता पर कोई बहस हो ही नहीं सकती सवाल अहमियत को समझने का है महत्ता को समझने को और उस की गुणवत्ता को सूझने का है विनोबा ने बापू का अनुसरण करते हुए chaha था की हम सब गुण ग्राहक बन जाय और केवल गुणों का वरन करे और उन पर आचरण करे यही वजह थी की हमने राजस्थान प्राउड शिक्षण समिति में पिछले दिनों महात्मा गाँधी के जीवन और शिक्षा विचार पर महत्पूर्ण आयोजन किये